फागुन के महीने में फ़ाग गाने की परंपरा आज भी अपना अलग महत्व रखती है…
टोंक जिले के नगर और तारण गांवों में पूरे एक महीने चलता है फागोत्सव…
गायकी की यह कला धार्मिक गीतों के माध्यम से देती है भावी पीढ़ी को संदेश…




TONK :- भारत जिसकी पहचान उसके त्योहारों के साथ सांस्कृतिक विरासतों से है वही हर त्यौहार का अपना मजा है होली का त्योहार वैसे तो रंग-गुलाल ओर होली के हुड़दंग के रूप में जाना जाता है लेकिन हमारी परम्परागत कलाओं की बात ही कुछ और है हिन्दू धर्म के आराध्य देवो राम-लक्षण,शिव-पार्वती ओर कृष्ण-राधा के गीतों को फागुन के महीने में जोशले अंदाज में चंग की थाप ओर ढोल-मंजीरों के साथ गाये जाने की यह कला आज भी अपना खास महत्व रखती है जिसमे बुजुर्ग ओर युवाओं के साथ बच्चे भी अपनी कला का प्रदर्शन करते नजर आते है टोंक जिले में नगर, तारण जैसे कई गांवों में फ़ाग गाने की परंपरा का निर्वहन आज भी यथावत जारी है ।
होली जिसे रंग-गुलाल के साथ हुड़दंग के त्योहार के रूप में जाना जाता है वही यह त्योहार आपसी भाईचारे ओर धार्मिक आयोजनों से जुड़ा त्योहार भी है आज भी ग्रामीण क्षेत्रो में होली का डंडा रोपने के साथ ही पूरे एक महीने तक फागुन के महीने में कई जगहों पर सामुहिक रूप से फाग गाने की परंपरा कायम है जिसमे हिन्दू धर्म के आराध्य देवो भगवान राम-लक्ष्मण,कृष्ण-राधा और शिव पार्वती के गीतों को जोशीले अंदाज में फाग गायन शेली में गाया जाता है जिसके माध्यम से हमारे बुजुर्ग आने वाली भावी पीढ़ी को अपनी परम्पराओ से रूबरू करवाते नजर आते है ।
फाग में प्रमुख रूप से जोशले अंदाज में गाये जाने वाली फागों के मुखड़े :-
कब होही मिलन मोर राधा के संग ,अरे भर के रखे हौ पिचकारी मा रंग ,कब होही मिलन मोर राधा के संग ,अरे अपन अपन गोपी संग होरी खेले ग्वाला,तोला तोर बुलावत हे ये मुरली वाला ।
अरे, गोरिया करी के सिंगार ,अंगना में पीसे लीं हरदिया
होए, गोरिया करी के सिंगार ,अंगना में पीसे लीं हरदिया ।
गौरी संग लिए शिवशंकर खेलें फाग ,केकर भीगे हो लाली चुनरिया? ।
आधुनिक हिंदी और राजस्थानी गीतों पर चंग ओर ढोल-मंजीरों पर भक्ति रस में जोशले अंदाज में फागुन के महीने में सुनने को मिलते है और इन गीतों में जोशले अंदाज में गाने की परंपरा का निर्वहन आज भी हो रहा है वैसे तो
होली पर कई तरह के गीत गाये जाते है और गाने सुनने को मिलते हैं पर सबसे खास हैं फाग गीत जो कि सिर्फ फाल्गुन महीने में ही गाए जाने के कारण इन गीतों को फाग कहते हैं यह गीत चंग की थाप पर ढोलक और मंजीरे की संगत पर गाए जाते हैं ।